एक बार, शायद दीपावली के कुछ ही दिन बाद की बात होगी।
तारीख़ अब ठीक-ठीक याद नहीं,
पर जो हुआ, वह यमलोक के इतिहास में दर्ज हो गया —
“यमलोक की तकनीकी भूल” के नाम से।
गोवर्धनपुर का एक आदमी था — गिरधारी।
सीधा, ईमानदार, और इतना विनम्र कि उसकी भलमनसाहत
गाँव वालों को असहज कर देती थी।
वह कभी किसी से ऊँची आवाज़ में नहीं बोलता था।
उसकी मुस्कान में एक ऐसी सरलता थी
जो आजकल किसी दस्तावेज़ में दर्ज नहीं होती।
वह इतना सच्चा था कि झूठे लोग भी उसे देखकर अपने तर्क सुधार लेते थे।
एक दिन वह चुपचाप चल बसा।
गाँव में शोक की लहर थी —
दीपावली की जगमगाती रोशनी मन के अंधेरे में बुझ-सी गई थी।
लोग कहते —
“इतना अच्छा इंसान गया है, भगवान उसे सीधा स्वर्ग ले जाएगा।”
पर उन्हें क्या मालूम था कि
अब स्वर्ग भी ‘डिजिटल प्रक्रिया’ के अधीन हो चुका है।
जो दूत उसे लेने आया था,
वह पृथ्वीलोक के रंग-बिरंगे दृश्यों में इतना खो गया
कि लौटते समय एक दिन की गलती कर बैठा।
यमलोक पहुँचे तो मुख्य द्वार बंद था।
आम तौर पर आत्मा आते ही द्वार स्वयं खुल जाता है,
पर इस बार नहीं।
दो पहरेदार खड़े थे,
पास ही एक देवदूत फाइलों के ढेर में गुम था।
नाम मिला, तारीख़ ग़लत थी।
“ये आत्मा एक दिन लेट आई है।”
“सिस्टम में एरर है।”
डाटा मिसमैच हो रहा है |
“चित्रगुप्त महाराज की सिग्नेचर पेंडिंग हैं।”
कई तरह के वाक्य गूँज उठे —
और गिरधारी को लगा, वह अब भी धरती के किसी दफ्तर की लाइन में है,
बस फर्क इतना था कि यहाँ देवता भी क्लर्क की तरह बोल रहे थे।
यमलोक के हर द्वार पर अब बायोमेट्रिक लगा था,
आत्माएँ अब पवित्रता नहीं, प्रमाणीकरण से पहचानी जाती थीं।
कर्म का लेखा अब ईश्वर नहीं, एल्गोरिद्म तय करता था।
दूतों ने चित्रगुप्त से संपर्क किया।
पर पता चला — वे पृथ्वीलोक भ्रमण पर हैं।
वहाँ उनके उपासकों ने “कर्म डेटा पोर्टल” का शुभारंभ किया था,
जहाँ पुण्य-पाप की एंट्री अब स्वतः होती थी।
संचार देवता भी उनके साथ थे,
इसलिए अब यमलोक और पृथ्वी, दोनों के सर्वर डाउन थे।
एक दूत बोला —
“धरती पर उनकी पूजा हो रही है,
और यहाँ उनके बिना कोई निर्णय नहीं हो सकता।”
दूसरा बोला —
“देवता भी अब फाइलों में फँस गए हैं।”
प्रधान यमदूत ने आपात बैठक बुलाई —
तकनीकी, पुनर्जन्म और कर्म-विभाग के अधिकारी उपस्थित थे।
किसी ने सुझाव दिया — “तिथि बदल दो।”
दूसरा बोला — “चित्रगुप्त के अनुमोदन के बिना असंभव।”
तीसरा बोला — “अगर यमराज को पता चला तो नर्क शाखा में ट्रांसफर तय।”
गिरधारी यह सब सुनकर मुस्कराया —
“जीवन में भलाई की फाइलें हमेशा पेंडिंग रहती हैं,
यहाँ भी वही नियम चल रहा है।”
चित्रगुप्त अनुपस्थित थे,
इसलिए गिरधारी को धरती भेजने का आदेश हुआ।
“जब तक फाइल अपडेट न हो, इसकी रक्षा करना,”
प्रधान दूत ने मंगत को निर्देश दिया।
कहते हैं, उस रात दीपों की लौ असाधारण रूप से स्थिर थी।
गिरधारी अपने ही शोकसभा के बीच उठ बैठा —
जैसे फाइल गलती से ‘री-ओपन’ हो गई हो।
धरती पर लौटने के बाद उसे लगा,
जैसे किसी और लोक से आया हो —
पर जल्द ही उसने देखा,
यहाँ भी हर निर्णय फाइल में बंद था।
धीरे-धीरे वह लोकप्रिय होने लगा।
उसकी सादगी धीरे-धीरे लोकप्रियता में बदल गई।
लोग उसकी पूजा करने लगे।
राजनीति में बैठे लोग बोले —
“यह आदमी भीड़ को अपने नाम से जोड़ सकता है।”
उसे टिकट मिला, वह मंत्री बन गया।
अब उसके पास वही शक्ति थी
जिसके कारण वह कभी यमलोक के द्वार पर अटका था —
फाइल पर हस्ताक्षर करने की।
वह कहता —
“नियम तो नियम है।”
और मुस्कराता — वही पुरानी मुस्कान।
धीरे-धीरे उसने नियमों की ऐसी समझ बना ली
कि कोई फाइल बिना उसकी मर्जी आगे न जाती।
कर्मचारी फुसफुसाते —
“मंत्री जी के पास कोई दिव्य वरदान है,
इनकी फाइलें खुद चलती हैं।”
गिरधारी बस मुस्कराता रहता।
उसे पता था, वरदान नहीं, यह ‘प्रक्रिया’ का ज्ञान है —
जो यमलोक में सीखा गया था।
कभी-कभी वह सोचता —
“शायद यमलोक की गलती भी एक संयोग नहीं थी,
क्योंकि वहाँ से लौटकर मैंने यहाँ के नियमों को समझ लिया।”
एक रात, दीपावली के समय,
वह देर तक मंत्रालय में अकेला बैठा था।
दीपक की लौ स्थिर थी,
कमरे में बस कागज़ों की सरसराहट थी।
अचानक वही दूत — मंगत — प्रकट हुआ।
“गिरधारी! तुम्हारे नाम की फाइल फिर खुल गई है।
यमराज का आदेश है —
तुम्हें अब लौटना होगा।”
गिरधारी ने बिना विचलित हुए पूछा —
“फाइल पर अनुमोदन संख्या है?”
मंगत चौंका — “क्या मतलब?”
गिरधारी बोला —
“नियम 23(क) — बिना प्रमाण संख्या के आदेश अमान्य है।
और फिर, आज की तारीख़ मैंने ‘स्थगित समीक्षा’ में डाल दी है।
अब फाइल अगले अधिवेशन से पहले नहीं खुल सकती।”
मंगत स्तब्ध खड़ा रहा।
गिरधारी ने धीरे से कहा —
“देखो मंगत, स्वर्ग और मंत्रालय में अब कोई फर्क नहीं रहा।
दोनों जगह काम वही होता है —
फाइलें चलती हैं, आत्माएँ नहीं।”
वह कुछ पल को चुप रहा।
शायद उसे खुद भी लगा कि
वह अब किसी अदृश्य नियम का हिस्सा बन चुका है,
जिसे वह खुद लिख चुका है।
मंगत धीरे-धीरे गायब हो गया।
कमरे में सिर्फ दीपक की लौ रह गई,
जो अब स्थिर थी —
बिलकुल गिरधारी की मुस्कान की तरह।
कहते हैं, तब से जब किसी मंत्रालय में
कोई फाइल बिना वजह वर्षों तक अटक जाती है,
या किसी नियम की समीक्षा अंतहीन हो जाती है,
तो अफसर धीरे से कहते हैं —
“यह गिरधारी की फाइल है।”
और यमलोक में जब किसी आत्मा का निर्णय देर से होता है,
चित्रगुप्त मुस्कराकर कहते हैं —
“गिरधारी ने तारीख़ बदल दी होगी।”
और शायद इसी तरह,
हर बार जब न्याय देर से आता है,
कोई मुस्कुराता है —
ठीक वैसी ही मुस्कान लिए
जैसी गिरधारी के चेहरे पर थी।