📝 सेवक – एक लोकतांत्रिक मिथक
✍️ कुन्दन समदर्शी जब कोई नेता मंच से गरजकर कहता है – “मैं जनता का सेवक हूँ!”,तो ऐसा प्रतीत होता है मानो सिकंदर खुद कह रहा हो – “मैं जूते सिलने आया हूँ!”यह कथन जितना आदर्शवादी और मधुर सुनाई देता है,व्यवहार में उतना ही विरोधाभासी और विडंबनापूर्ण मालूम होता है। आज के नेताओं की ज़ुबान…