— जब चोरी पकड़ी गई जादू के बहाने
बात उन दिनों की है, जब मुल्ला नसीरुद्दीन बुख़ारा में रहते थे और उनकी बुद्धिमत्ता व विनोदपूर्ण हाज़िरजवाबी की चर्चा दूर-दूर तक फैली हुई थी। अमीर-रईस लोग उनकी संगति को अपने लिए सौभाग्य मानते थे। जिस घर में कोई दावत होती, वहीं मुल्ला नसीरुद्दीन को विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता। मुल्ला भी ऐसे अवसरों पर जाना पसंद करते, क्योंकि इससे उन्हें मनुष्यों की प्रवृत्तियों को पहचानने का अवसर मिलता था और समाज की सच्चाई भी समझ में आती थी।
एक दिन बुख़ारा के एक अत्यंत धनी व्यक्ति ने अपने पोते के जन्म के उपलक्ष्य में भव्य भोज का आयोजन किया। उसने नगर के सभी प्रतिष्ठित नागरिकों को आमंत्रित किया और स्वयं जाकर मुल्ला नसीरुद्दीन से आग्रह किया कि वे अवश्य पधारें।
दावत का दृश्य अत्यंत भव्य था। सोने की थालियाँ, चाँदी के कटोरे और हीरे जड़े चम्मच मेहमानों के सामने परोसे जा रहे थे। धन का वैभव हर ओर झलक रहा था। जब मुल्ला नसीरुद्दीन वहाँ पहुँचे तो सारा वातावरण चकाचौंध से भरा था। उनकी लंबी दाढ़ी और अनोखी टोपी उन्हें भीड़ में अलग पहचान दे रही थी।
भोजन के समय मुल्ला ने देखा कि उनके सामने बैठा नीली शेरवानी पहना एक व्यक्ति इधर-उधर देखकर चुपके से हीरे जड़ा सोने का चम्मच अपनी बाईं जेब में डाल रहा है। उसने यह काम बड़ी सफ़ाई से किया था, परंतु नसीरुद्दीन की पैनी दृष्टि से यह बच न सका। वे शांत भाव से उसे देखते रहे, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
भोजन समाप्त होने के बाद मुल्ला नसीरुद्दीन खड़े हुए और दाढ़ी सहलाते हुए नाटकीय स्वर में बोले—
“अज़ीज़ दोस्तों! कुछ दिन पहले मैं चीन के एक प्रसिद्ध जादूगर का मेहमान था। वहाँ मैंने कई रोचक जादू की कलाएँ सीखी हैं। इस प्रफुल्ल अवसर पर मैं भी आप सभी को एक छोटा-सा जादू दिखाना चाहता हूँ।”
सभा में उत्सुकता छा गई। सबने आग्रह किया कि वे जादू दिखाएँ।
मुल्ला ने अपनी थाली से अपना चम्मच उठाया और सबको दिखाते हुए बोले—“देखिए, मैंने यह चम्मच अपनी शेरवानी की बाईं जेब में रखा है। अब बताइए, यह चम्मच कहाँ है?”
लोगों ने एक स्वर में कहा— “आपकी जेब में!मुल्ला मुस्कराए और बोले— “ग़लत!”
फिर उन्होंने दावत देने वाले रईस से कहा—“जनाब, कृपया ज़रा नीली शेरवानी वाले मेहमान की बाईं जेब में हाथ डालकर देखें।”रईस ने जैसे ही जेब में हाथ डाला, चम्मच बाहर आ गया।
सभा तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठी। सब मुल्ला नसीरुद्दीन की ‘जादूगरी’ पर दंग रह गए। परंतु नीली शेरवानी वाला व्यक्ति न लज्जा छिपा सका और न आँखें मिला सका।
मुल्ला नसीरुद्दीन मुस्कराते हुए मन ही मन बोले—
“दोस्तो, यह कोई जादू नहीं था… बस सच्चाई से पर्दा उठाने की एक कला थी।”