अतीत की छाया
कभी-कभी हम अपने वर्तमान से असंतुष्ट हो उठते हैं।हम शिकायत करते हैं कि जीवन वैसा क्यों नहीं जैसा हमने चाहा था।कभी भाग्य पर, कभी नियति पर, कभी किसी अदृश्य शक्ति पर दोष मढ़ते हैं।परंतु सच यह है कि हमारा आज न किसी ईश्वर की मनमर्ज़ी है, न किसी भाग्य की दुर्घटना —यह तो हमारे ही…