अतीत की छाया

अतीत की छाया का चित्र

कभी-कभी हम अपने वर्तमान से असंतुष्ट हो उठते हैं।
हम शिकायत करते हैं कि जीवन वैसा क्यों नहीं जैसा हमने चाहा था।
कभी भाग्य पर, कभी नियति पर, कभी किसी अदृश्य शक्ति पर दोष मढ़ते हैं।
परंतु सच यह है कि हमारा आज न किसी ईश्वर की मनमर्ज़ी है, न किसी भाग्य की दुर्घटना —
यह तो हमारे ही बीते हुए कल का परिणाम है, हमारे अपने कर्मों का प्रतिध्वनि।
समय कभी पक्षपाती नहीं होता; वह बस हमारे कर्मों का हिसाब बराबर करता है — न जल्दी, न देर से।

जीवन का प्रत्येक क्षण किसी पूर्व क्षण की संतान है।
जो कुछ आज हमारे सामने घट रहा है, वह उस अतीत की छाया है जिसे हमने कभी अनजाने में रचा था।
हम जो सोचते हैं, वह बीज बन जाता है;
जो करते हैं, वह बीज को मिट्टी देता है;
और जो दोहराते हैं, वही कर्म बनकर नियति का वृक्ष बन जाता है।
फिर एक दिन हम उसी वृक्ष के नीचे खड़े होकर या तो उसकी छाँव में विश्राम करते हैं —
या उसकी कठोर जड़ों पर पछताते हैं।
जीवन का गणित इतना सरल है, पर हम इसे सबसे कठिन बना देते हैं।

मनुष्य का सबसे बड़ा भ्रम यह है कि वह वर्तमान को एकाकी मानता है —
मानो वह किसी शून्य से जन्मा हो।
परंतु वर्तमान कभी भी स्वतंत्र नहीं होता; वह सदैव अतीत की गहराइयों से रिसकर आता है।
हमारे आज के आँसू, कल के निर्णयों की परिणति हैं।
हमारी आज की हँसी, कल की सजगता का पुरस्कार है।
और हमारी नियति — वह तो हमारे ही विचारों की पगडंडियों पर चलती हुई, हमारे पास लौटती है।
भाग्य और कर्म में वैर नहीं, गहरा संबंध है;
कर्म ही वह जल है जिसमें भाग्य का बीज अंकुरित होता है।

कभी-कभी हम कहते हैं, “यह तो किस्मत का खेल है।”
पर यह कहना वैसा ही है जैसे कोई किसान बीज न बोकर, वर्षा को दोष दे कि खेत सूखा क्यों है।
समय हमें अवसर के रूप में वर्षा देता है,
पर बीज तो हमें ही बोने होते हैं —
विचारों के, कर्मों के, और संकल्पों के।
जो सजगता के साथ बीज बोता है,
वह कल अपने ही हाथों में सुख की फसल थामता है।
जो अंधविश्वास, आलस्य या क्रोध में बोता है,
वह अपने ही हाथों से कँटीली झाड़ी उगाता है —
और फिर उन्हीं काँटों को नियति की सजा समझता है।

जीवन की सबसे सूक्ष्म और सच्ची अनुभूति यह है कि हम स्वयं अपने भाग्य के शिल्पकार हैं।
हम अपने कर्मों से नियति का नक़्शा बनाते हैं,
और अपने विचारों से उसे रंग देते हैं।
कभी-कभी हमें यह भ्रम होता है कि परिस्थितियाँ हमें बनाती हैं,
पर वस्तुतः हम ही परिस्थितियों को जन्म देते हैं।
बाह्य संसार केवल हमारी आंतरिक स्थिति का प्रतिबिंब है।
यदि भीतर संतुलन है तो बाहर का तूफ़ान भी स्पर्श नहीं करता,
और यदि भीतर अशांति है तो छोटी-सी लहर भी हमारे अस्तित्व को डुबो देती है।
मनुष्य का सारा संघर्ष बाहर नहीं, भीतर से आरंभ होता है।

आज जो हमें जीवन में कठिन प्रतीत होता है,
वह भी किसी गहरे अर्थ में आवश्यक है।
यह वर्तमान का दर्द हमें हमारे कल की विसंगतियों से परिचित कराता है।
दुख सज़ा नहीं, संकेत है —
यह हमें बताता है कि हमने कहाँ स्वयं से समझौता किया था,
कहाँ अपने सत्य से भटके थे।
और जब यह बोध हो जाता है,
तो दुःख भी गुरु बन जाता है —
क्योंकि वह हमें उस मार्ग पर लौटाता है,
जहाँ से हमने सही दिशा खोई थी।

वर्तमान, वास्तव में, अतीत और भविष्य के बीच की एक पुलिका है।
अतीत उसका आधार है, और भविष्य उसका विस्तार।
यदि यह पुल मज़बूत नहीं, तो भविष्य तक पहुँचना असंभव है।
इसलिए आज को कोसना व्यर्थ है;
आज तो वह भूमि है जिस पर कल का भवन खड़ा होगा।
जिसने आज को सुधारा, उसने अपने कल को पहले ही जीत लिया।
और जो आज को भाग्य की हवाओं में उड़ा देता है,
वह भविष्य में अपने ही बनाए तूफ़ान से डरता है।

हर दिन, हर क्षण हमारे पास अवसर के रूप में आता है —
अपने अतीत को परिवर्तित करने का नहीं,
बल्कि भविष्य को नया अर्थ देने का।
हम बीते हुए को मिटा नहीं सकते,
पर आने वाले को रूप दे सकते हैं।
यही जीवन का संतुलन है —
जो हो चुका, उसे स्वीकारो;
जो हो रहा है, उसे सजगता से जियो;
और जो आने वाला है, उसके लिए विश्वास रखो।

यदि हम इस सत्य को समझ लें कि “आज हमारे कल का प्रतिबिंब है,”
तो शिकायत का स्थान कृतज्ञता ले लेगी।
क्योंकि तब हमें ज्ञात होगा —
कि हर अनुभव, हर पीड़ा, हर परिस्थिति
हमारे आत्म-विकास का एक साधन है।
जीवन हमें कभी दंड नहीं देता,
वह केवल हमें हमारे ही कर्मों का दर्शन कराता है —
ताकि हम जागें, जानें, और बदलें।

इस जागरूकता का अर्थ यह नहीं कि हम अतीत पर पश्चाताप में डूब जाएँ;
बल्कि यह कि हम आज को इतने सौंदर्य और ईमानदारी से जिएँ
कि आने वाला कल जब हमारे सामने आए,
तो हमें गर्व हो कि हमने उसके लिए एक उजला बीज बोया था।

जीवन की यात्रा में सबसे पवित्र क्षण यही है — “आज।”
यही वह स्थान है जहाँ समय की नदी ठहरकर हमें अवसर देती है —
अपनी दिशा बदलने का।
इसलिए आज को बोइए सजगता से,
सिंचिए कर्म से, और उजालिए प्रेम से।
कल की फसल निश्चित ही मधुर होगी —
क्योंकि नियति कभी अन्याय नहीं करती,
वह केवल प्रतिबिंब लौटाती है।

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