आगरा का राजदरबार उस दिन भी वैसे ही भरा हुआ था, जैसा वह प्रतिदिन रहता था। संगमरमर की शीतल फर्श पर दूर-दूर तक दरबारियों की पंक्तियाँ सजी थीं और सिंहासन पर बादशाह अकबर गंभीर मुद्रा में बैठे हुए राजकार्य देख रहे थे।
तभी द्वार पर हलचल हुई।
एक थका-हारा किसान फटे वस्त्रों में दरबार के भीतर आया।
उसकी आँखों में भय था, पर न्याय की लपट भी झिलमिला रही थी।
वह सिंहासन के सामने झुका— “जहाँपनाह! मुझ पर अन्याय हुआ है। मैं आपके चरणों में केवल न्याय की भीख माँगने आया हूँ।”
अकबर ने उसे स्नेह से उठाया— “बोलो, तुम्हारे साथ क्या हुआ है?”
किसान ने काँपती आवाज़ में बताया— “मैं एक साहूकार के खेत में मजदूरी करता हूँ। आज सूरज उगने से लेकर अस्त होने तक खेत में खून-पसीना बहाया। लेकिन जब शाम को मजदूरी माँगी, तो मुझे आधे पैसे दिए गए।”
“आधे?” अकबर की भौंहें तन गईं।
“हाँ, हुजूर… वह कहता है कि मैंने आधी धूप और आधी छाँह में काम किया,
इसलिए पूरी मजदूरी का अधिकारी नहीं हूँ।”
दरबार में फुसफुसाहट फैल गई।
अकबर का मुख कठिन हो उठा।
उन्होंने बीरबल की ओर देखा—
“इसका न्याय अब तुम करोगे।”
बीरबल मुस्कुराए— “कल, जहाँपनाह।”
अगले दिन साहूकार और किसान दोनों दरबार में उपस्थित थे।
बीरबल ने साहूकार से पूछा— “तुम कहते हो कि किसान ने आधा काम किया?”
साहूकार ने गर्व से सिर उठाकर कहा— “जी, आधी धूप में काम आधा ही माना जाता है।”
बीरबल ने शांत स्वर में आदेश दिया— “ठीक है… आज रात आप अतिथि बनकर यहीं ठहरेंगे।”
रात हुई।
साहूकार को शाही कक्ष में ले जाया गया। बिस्तर राजसी था, गद्दे मुलायम, दीये जल रहे थे — पर बिस्तर पर केवल आधी चादर बिछी थी।
उसने चादर ओढ़ी —
आधा शरीर ढँका, आधा खुला…
ठंडी हवा भीतर से बहने लगी।
वह बेचैन होकर उठा और सेवक को पुकारा— “पूरी चादर कहाँ है?”
सेवक बोला— “हुजूर, आपको आधा आराम मिलेगा…
क्योंकि आपने आधी मेहनत ही मानी थी।”
साहूकार बिस्तर पर करवटें बदलता रहा।
शरीर आधा काँपता रहा, आधा गरम…
रात उसके लिए बीतना कठिन हो गई।
सुबह दरबार लगा।
साहूकार बुझी आँखों के साथ आया।
बीरबल ने पूछा— “रात कैसी रही?”
वह सिर झुकाकर बोला— “हुज़ूर… आधी ठंड, आधी नींद।
बहुत पीड़ा हुई।”
बीरबल गंभीर हो गए— “जैसे आधी चादर में तुम्हें पूरी रात पीड़ा मिली,
वैसे ही किसान को पूरी मेहनत में आधा मेहनताना मिला।”
साहूकार काँप उठा।
वह अकबर के चरणों में गिर पड़ा— “मुझे क्षमा करें… मैंने पाप किया।
मैं किसान को पूरा वेतन दूँगा।”
अकबर ने घोषणा की— “जो न्याय को आधा बाँटे,
उसका सुख भी आधा होगा।”
किसान को पूरी मजदूरी दी गई। उसकी आँखों में आँसू थे —
पर यह आँसू कष्ट के नहीं, न्याय के थे।
सीख
यह कहानी हमें सिखाती है—
न्याय सिर्फ शब्द नहीं, अनुभव से समझाया जाता है।
अन्याय करने वाला जब वही पीड़ा भोगता है,
तभी उसके भीतर पश्चाताप जागता है।
और यही बीरबल की सबसे बड़ी शक्ति थी —
केवल निर्णय नहीं, बोध कराना।